‘पुलिसिया सैल्यूट’ पर भारी पड़ता नक्सलियों का ‘लाल सलाम’

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सीआरपीएफ के आईजी कुलदीप सिंह इन आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं कि “ऑपरेशन में किसी तरह की इंटेलीजेंस चूक हुई है। वह कहते हैं- बीजापुर मुठभेड़ में 25-30 नक्सली मारे गए हैं। ” केंद्र में तैनात इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक सीनियर अधिकारी ने दूसरा मत से कहा- लेफ्टविंग एक्सट्रिमिस्ट को लेकर केंद्र की लचर नीति बनी रही तो ऐसे मुठभेड़ पर काबू पाना मुशिकल हो जाएगा। वह दिनों दिन मजबूत हो रहे हैं।

राजीव रंजन नाग

इंसान के खून में सिर्फ लाल और सफेद कण ही नहीं होते, एक अदद बेचैनी भी होती है। भेद-भाव, उपेक्षा, अपमान, अशिक्षा, बेकारी, शोषण,भुखमरी और पुलिसिया जुल्म से जूझ रहे पचास हजार नक्सलियों की यही बेचैनी है। निरंतर शोषण और उत्पीडऩ के कारण वे राजसत्ता के खिलाफ बंदूकें  उठाने के लिए मजबूर हुए हैं। देश के लगभग 42 फीसदी भू-भाग पर प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर शासन चला रहे नक्सली-माओवादी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन गए हैं। नक्सली सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को निरंतर रणनीति बदलने को मजबूर कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के सुकमा और बीजापुर सीमा पर स्थित टेकलगुड़ा गांव के पास नक्सलियों के साथ 3 अप्रैल को हुई मुठभेड़ में शहीद हुए 22 जवानों के शरीर के चिथड़े सरकार की नाकाम होती नीतियों  के परिणाम हैं। जिन हालात में और जिस तरह का हमला सुरक्षा बलों पर किया, वह न केवल नक्सल उनमूलन की हमारी दीर्घकालिक नीति पर बल्कि खास आपरेशनों के लिए बनाई जाने वाली रणनीति से लेकर उसके अमल तक पर गहरे सवाल खड़े करता है। यह सामान्य गश्त पर जा रही टीम पर हमला नहीं था। दो हजार से ज्यादा सुरक्षाकर्मी एक खास लक्ष्य के साथ एक विशेष ऑपरेशन पर भेजे गए थे। यह ऑपरेशन कई अलग-अलग सूचनाओं पर आधारित था। आला अधिकारियों की देख रेख में पिछले कई दिनों से इस ऑपरेशन की तैयारी की जा रही थी। इतना कुछ होने के बावजूद बताई गई जगह पर कुछ नहीं मिला। सूचनायें इक्कठा करने और मिली सूचनाओं की प्रमाणिकता जांचने में सुरक्षा अधिकारियों की हरकतें शमर्सार करने वाली है। उनकी मूर्खता के कारण लगभग दो दर्जन जवानों को जान गंवानी पड़ी।

नक्सलियों से निबटने के लिए अभी तक कोई ऐसी रणनीति नहीं बन सकी। एसटीएफ, सीआरपीएफ, डीआरजी और कोबरा बटालियनके साझा खोजी अभियान के पहले खुफिया ऐजेंसियां नाकाम रहीं। नक्सली घरों के अंदर छिपे थे, इस योजना का पता न कर पाना सुरक्षा बलों के लिए जानलेवा साबित हुआ ।
घटना स्थल का नजारा चौंकाने वाला था। गांव में नक्सली मौजूद थे और एक महुआ पेड़ के पास 6 जवानों के शव पड़े हुए थे। वहीं थोड़ी दूर में 3 जवान के शव भी पड़े थे और पास में ही मौजूद एक घर के पास एक जवान का शव पड़ा था। ग्रामीणों के अनुसार दस से ज्यादा जवानों के शव जंगलों में बिखरे पड़े थे। सुरक्षाबल के जवानों के साथ नक्सलियों की पहली मुठभेड़ गांव के पास पहाड़ी में हुई थी। दूसरी मुठभेड़ घायल जवानों को ले जाते वक्त हुई। नक्सलियों ने घायल जवानों को ले जा रही सुरक्षाबलों की टीम पर फिर से गोलीबारी शुरू कर दी, जिसके जवाब में जवानों ने भी फायरिंग की।
रायपुर में तैनात एक आला पलिस अधिकारी के अनुसार  दो अप्रैल को सुकमा और बीजापुर के पांच कैंपों के तकरीबन दो हजार जवान बीजापुर जिले के तर्रेम के पास जंगलों में गए हुए थे।

इनमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), इसकी विशेष प्रशिक्षित इकाई कोबरा (कमांडो बटालियन फॉर रिजोल्यूट एक्शन), डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के जवान शामिल थे। इन जवानों ने बीजापुर के तर्रेम, उसूर और पामेड़ तथा सुकमा के मिनपा एवं नरसापुर में अभियान शुरू किया था। सुरक्षा बलों का यह अभियान नक्सलियों के बटालियन नंबर वन के एरिया कमांडर हिदमा के खिलाफ था। हिदमा सबसे खूंखार और वांछित नक्सलियों में से एक माना जाता है। हिदमा सुरक्षा बलों पर तमाम हमले करने का जिम्मेदार है। खुफिया एजेंसियों की माने तो हिदमा क्षेत्र में सक्रिय रूप से मौजूद था और उसकी टीम खूनी  हमले के लिए जिम्मेदार है।
अधिकारियों के अनुसार जवान अभियान से लौटते समय नक्सलियों के घात में फंस गए। हमले की ताजा मुठभेड़ नारायणपुर जिले में हुई। डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड की बस में हुई। आईईडी विस्फोट के दस दिनों के बाद हुई है, जिसमें पांच जवान शहीद हो गए थे। राज्य के नक्सल विरोधी अभियान के डीआईजी ओपी पाल कहते हैं – 3 अप्रील की दोपहर बीजापुर-सुकमा जिले की सीमा पर जगरगुंड़ा थाना क्षेत्र (सुकमा जिला) के अंतर्गत जोनागुड़ा गांव के करीब नक्सलियों की पीएलजीए बटालियन तथा तर्रेम के सुरक्षा बलों के मध्य मुठभेड़ हुई। मुठभेड़ तीन घंटे से अधिक समय तक चली।

पाल ने मुठभेड़ में कोबरा बटालियन के एक जवान,  बस्तरिया बटालियन के दो जवान तथा डीआरजी के दो जवान (कुल पांच जवानों) के शहीद होने की जानकारी दी थी। उन्होंने कुछ जवानों को लापता होने की भी जानकारी दी थी। उनके अनुसार इस घटना में 30 जवान घायल हुए। जिन्हें रायपुर और बीजापुर के अस्पतालों में भर्ती कराया गया। घटनास्थल से एक महिला नक्सली का शव बरामद किया है। मुठभेड़ में नक्सलियों को भी काफी नुकसान होने की खबर है।
नक्सलियों ने शहीद जवानों की वर्दी, जूते और अन्य जरूरत का सामान निकाल लिया। आइजी बस्तर सुंदरराज पी ने बताया कि नक्सली जवानों से सात एके 47 रायफल, दो इंसास रायफल व एक एलएमजी लूटकर ले गए हैं। आइजी के अनुसार मौके से जिस एक महिला नक्सली का शव इंसास रायफल समेत मिला है उसकी पहचान पामेड़ एलजीएस कमांडर माड़वी वनोजा के रूप में हुई है। इस मुठभेड़ में कम से कम 12 नक्सली मारे गए हैं और 16 से ज्यादा घायल हुए हैं। घटना स्थल पर पहुंचे बीबीसी के पत्रकार के अनुसार एक किलोमीटर के दायरे में कई जगह जवानों के शव पड़े हुए थे, जिन्हें मौक़े पर पहुँची एसटीएफ़ की टीम ने बरामद किया। पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ में यह माओवादियों का सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है।

मुठभेड़ की घटना के तुरंत बाद असम की अपनी चुनावी यात्रा बीच में छोड़ कर नई दिल्ली पहुंचे गृह मंत्री अमित शाह वरिष्ठ अधिकारियों के साथ समीक्षा की। बैठक में केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला, इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक अरविंद कुमार और गृह मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। दिल्ली पहुंचने से पहले गुवाहाटी में शाह ने कहा , “मैं जवानों के परिवारों को भरोसा दिलाना चाहता हूं कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।” यह एक तयशुदा बयान था, जिसे ऐसे मौकों पर प्रत्येक हादसे बाद दुहराया जाता रहा है।

बस्तर में तैनात आईजी पी सुंदरराज ने कहा , “22 जवानों के शव बरामद हो गए हैं। 31 जवान घायल हैं, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनकी हालत स्थिर बनी हुई है। एक कोबरा जवान लापता हैं। तलाशी अभियान जारी है।” कुछ दिन बाद इस जान को नक्लियों ने रिहा कर दिया।

सीआरपीएफ के आईजी कुलदीप सिंह इन आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं कि “ऑपरेशन में किसी तरह की इंटेलीजेंस चूक हुई है। वह कहते हैं- बीजापुर मुठभेड़ में 25-30 नक्सली मारे गए हैं। ” केंद्र में तैनात इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक सीनियर अधिकारी ने दूसरा मत से कहा- लेफ्टविंग एक्सट्रिमिस्ट को लेकर केंद्र की लचर नीति बनी रही तो ऐसे मुठभेड़ पर काबू पाना मुशिकल हो जाएगा। वह दिनों दिन मजबूत हो रहे हैं।
नेपाल में पशुपति से आंध्रप्रदेश के तिरुपति तक देश के 13 राज्यों के 604 जिलों में से 165 जिलों में नक्सलियों की अपनी सत्ता है। विचारधारा से लैस होने ·के कारण नक्सली आतं·वादियों से अधिक खतरनाक मंसूबे रखते हैं। विचारधारा से जुड़े होने के कारण उन्हें राजनीतिक दलों की सहानुभूति और संरक्षण प्राप्त है। आज वह मजबूती के साथ केंद्रीय सत्ता को ललकारने की स्थिति में हैं।

विशालकाय पहाड़ियों से घिरे नक्सलवाद प्रभावित दंतेवाड़ा में दर्जनों किलोमीटर क्षेत्र में फैले घनघोर जंगल और सड़कों पर झुंड में घूमते हथियारबंद नक्सली। वातावरण इतना डरावना है कि आदमी तो क्या कोई जानवर भी उधर जाने का साहस नहीं कर सकता। घनघोर अंधेरा। दूर-दूर तक खामोशी और सड़कें सूनी। सूर्यास्त के बाद जगदलपुर से दंतेवाड़ा की तरफ जाती सड़कों पर कोई भी गाड़ी से प्रवेश करने का साहस नहीं करता।

सरकरार की नजर में नक्सली समस्या महज उग्रवाद नहीं बल्कि सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के अलावा बेकारी, अन्याय से भी जुड़ा है। जमीन और जंगलों से बेदखल किए जाने के कारण बड़ी संख्या में आदिवासी, गैर-आदिवासी, बेरोजगार और सर्वहारा समुदाय माओवादी संगठनों में शामिल होकर अपनी उपेक्षा और अन्याय के खिलाफ हिंसां और प्रतिकार पर उतारू हैं। सरकार उन्हें जमीन, जंगल और रोजगार के अवसर देकर समाज की मुख्यधारा में शामिल करने की अनेक योजनायें बनाती रही है। लेकिन आती-जाती सरकारों की नीतियां बदलती रहीं। प्राथमिकताएं तय होतीं रहीं। और आखिर में कोई फैसला नहीं लिया जा सका। इससे उनमें असंतोष और बढा। नक्सल प्रभावी राज्यों में खाली पड़े पदों को तेजी से भरने ·का निर्देश दिया गया है।  सामाजिक आर्थिक संतुलन के साथ बेकारी पर काबू पाने से इस समस्या पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकेगा। गृह मंत्रालय में उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार नक्सली हिंसा के कारण संचार, सड़क और बिजली के विस्तार और मनरेगा जैसे कार्यक्रम पर विपरीत असर पड़ा है। बीते दस सालों में अकेला छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा में 47.83 फीसदी की वृद्धि हुई है।

गृह मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने कहा-नक्सली हिसा पर काबू पाने के लिए सुरक्षाकर्मियों द्वारा मानव संचालन प्रक्रिया पर स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर (एसपीओ) का पूरा पालन नहीं किए जाने से सरकार की चिंता बढ़ गई है। नक्सलियों ने  अत्याधुनिक हथियार जुटाए हैं और हमले करने के तरीके में बदलाव किए हैं। नक्सली संगठन संवेदनशील सामाजिक आर्थिक मुद्दों की आड़ लेकर जनसमर्थन अपने तरफ करने की कोशिश करते रहे हैं। क्सली संगठनों को देखने वेला एक पूर्व आईएएस अधिकारी कहते हैं- प्रस्तावित औद्योगिक परियोजनाओं, वकास जैसी कुछ परियोजनाओं से ग्रामीणों तथा आदिवासियों के विस्थापन ने इन संगठनों को अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका दिया है।

छत्तीसगढ़ में इससे पहले भी पुलिस बलों पर हमले होते रहे हैं। नक्सलियों ने उन्हें संभलने तक का मौका नहीं दिया। यह एक ऐसी गुप्त योजना थी, जिसकी पुलिस और खुफिया एजेंसियों तक को भनक नहीं लगी। नक्सली समय-समय पर हमले के अपने मोडल में बदलाव करते रहे हैं।

नक्सलियों ने अपनी इस योजना को उस समय अंजाम दिया जब देश के पांच राज्यों में विधान सभा के चुनाव हो रहे थे और बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को इन राज्यों में तैनात किया गया था। पुलिसिया जुल्म नक्लियों के अजेंडे पर रहा है। पुलिस उनके प्रमुख निशाने पर रही है। उनसे लूटे और छीने हथियारों से वे अपना जखीरा आबाद करते रहे ।

एक आला आईपीएस अधिकारी कहते हैं- बिना किसी योजना और रणनीति के ऑपरेशन को अंजाम देने का खूनी परिणाम झेल चुकी सरकारें हमेशा अपनी नाकामी का ठीकरा खुफिया, तैयारियों, कारगर तरीकों का हवाला देकर अपनी झेप मिटाने की कोशिश की है। ताजा हमले में भी ऐसा ही हुआ दिखता। योजना में गंभीर गड़बड़ी थी। इंटेलिजेंस ब्यूरो की मानें तो हमले को अंजाम देने के लिए आंध्र प्रदेश के विशेषज्ञ नक्सली कमांडरों को बुलाया गया था।
केंद्र की पिछली यूपीए करकार का समर्थन कर रहे वामपंथी दलों के दवाब के कारण सरकार  नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाने से परहेज करती रही थी। इन सालों में नक्सली-माओवादी संगठनों ने देश भर में अपने जनाधार का जमकर विस्तार और सरकार के लिए चुनौती बनते गए।

नक्सलियों के खिलाफ सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करने के सवाल पर सरकार और सेना के बीच मतभेद बना रहा है।

18-30 साल के युवक -युवतियों वाला यह संगठन पूरी तरह साधन संपन्न है। ये आधुनिक हथियार, संचार व्यवस्था और वसूली से मिलने वाले पैसों से सत्ता को ललकारते रहे हैं। सांसदों, विधायकों को मिलने वाले क्षेत्रीय विकास के पैसों में उनका हिस्सा है। ठेकेदार और अधिकारी उन्हें धन देकर अपने को सुरक्षित पाते हैं। उनके मुखबिरों में पुलिस और अधिकारी शामिल हैं।

उनके ट्रेनिंग कैम्पों में तयशुदा पाठ्यक्रम और लक्ष्यों की जानकारी दी जाती। उनकी जमात में एमबीए, डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर, लेखक, तकनीशियन, नर्स, शूटर, बम और बारूदी सुरंग के विशेषज्ञ शामिल हैं। बैरकों में कंप्यूटर इंजीनियर और गाडिंयों के मकैनिक भी हैं। खानसामे की टीमे हैं।  उनके बैरकों में ऑपरेशन थिएटर, डॉक्टरों की टीमें हैं। हिंदी, अंग्रेजी, तेलगू, बंगला, असमी और उर्दू में प्रकाशित पाठ्यक्रमों में शोषित और शोषक में अंतर, लक्ष्य, भेदभाव, पुलिसिया जुल्म की अनेक जानकारियां उपलब्ध हैं।
दूसरी तरफ साक्ष्य, तैयारी, रणनीति, योजना, कार्यदल, ग्रुप, निशानेबाजी, हथियार चलाने, तैरने और जंगलों में बचने-छिपने के ठिकानों के नक्शे हैं। रेडियो-वायरलेस पर संवाद के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कोड वर्ड, जिम्मेदारी और परिणाम के अलावा गाने और तराने जैसे विषय वस्तु शामिल हैं। नक्सलियों के नए जावांजों को विधिवत परीक्षा से गुजरना होता है। उनकी अपनी हेरारकी है। योजनाओं को अंजाम देने पर जावांजों को पुरस्कृत और प्रोन्नत किया जाता है। असफलता हाथ लगने पर उन्हें दंडित भी किया जाता है।

मालूम हो कि नक्सलियों ने शहीद जवानों की वर्दी, जूते और अन्य जरूरत का सामान निकाल लिया। आइजी बस्तर सुंदरराज पी ने बताया कि नक्सली जवानों से सात एके 47 रायफल, दो इंसास रायफल व एक एलएमजी लूटकर ले गए हैं। आइजी के अनुसार मौके से जिस एक महिला नक्सली का शव इंसास रायफल समेत मिला है उसकी पहचान पामेड़ एलजीएस कमांडर माड़वी वनोजा के रूप में हुई है। इस मुठभेड़ में कम से कम 12 नक्सली मारे गए हैं और 16 से ज्यादा घायल हुए हैं। घटना स्थल पर पहुंचे बीबीसी के पत्रकार के अनुसार एक किलोमीटर के दायरे में कई जगह जवानों के शव पड़े हुए थे, जिन्हें मौक़े पर पहुंची एसटीएफ़ की टीम ने बरामद किया। पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ में यह माओवादियों का सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है।

सीआरपीएफ के आईजी कुलदीप सिंह इन आरोपों को खारिज करते हैं कि “ऑपरेशन में किसी तरह की इंटेलीजेंस चूक हुई है। वह यह दाबा करके खुश हैं कि- पुलिसया कारर्वाई में 25 से 30 नक्सली मारे गए हैं। ”