जानिए महामहत्वाकांक्षी वसीम रिज़वी को

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ए आर आज़ाद

 

वसीम रिज़वी की राजनीतिक पहचान शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन की है। ऐसे-वैसे उटपटांग मुद्दे तलाशना और कुछ ऐसे बयान देकर सुर्ख़ियां बटोरना है। उनके ताज़ा बयान से तो एक समुदाय विशेष में भूचाल आ गया है। इस बयान ने तो वसीम रिज़वी को देश के मुसलमान ही नहीं बल्कि अपने घरों से भी हिकार के शिकार हो गए हैं। वसीम रिज़वी को समझने के लिए सबसे पहले उनके विवादित बयान को समझना होगा। एक बयान में उन्होंने कहा था कि जानवरों की तरह बच्चे पैदा करने से देश को नु़कसान होता है। दूसरा उनका विवादित बयान था, बहुत से मदरसों में आतंकी ट्रेनिंग दी जाती है। उनका तीसरा प्रहार-हिंदुस्तान की धरती पर कलंक की तरह है बाबरी मस्जिद। अगला उनका विवादित बयान था-देश की विवादित 9 मस्जिदों को हिंदुओं को सौंप दें मुसलमान। उनके इस बयानों में अनुरोध था या आदेश, पता नहीं चलता है। क्योंकि वसीम रिज़वी का जितना क़द है, उससे कहीं कई गुना ज्यादा बात कह देते हैं, जो उनके बस में नहीं होता है। एक विवादित बयान उन्होंने यह भी दिया कि इस्लामिक मदरसों को बंद कर देना चाहिए क्योंकि यहां आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने इस्लामिक झंडे पर भी प्रश्नचिह्न लगाया।

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उन्होंने कहा कि चांद-तारे वाला हरा झंडा इस्लामिक झंडा नहीं है। यह पाकिस्तान मुस्लिम लीग से मिलता-जुलता है। अब उनका ताज़ा विवादित और उन्हें परेशानी में डालने वाला बयान क़ुरआन की 26 आयतों को लेकर है। दरअसल वसीम रिज़वी ने इन 26 आयतों को आतंक को बढ़ावा देने वाला बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका  दायर कर क़ुरआन से इसे हटाने की मांग की है। इसके पक्ष में उन्होंने तर्क दिया कि ये 26 आयतें मूल क़ुरआन का हिस्सा नहीं हैं बल्कि इसे बाद में जोड़ा गया है। वसीम रिज़वी के इस बयान और इन 26 आयतों को क़ुरआन से हटाने की सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर दरवाज़ा खटखटाने पर पूरी दुनिया के मुसलमान उनसे घृणा और ऩफरत करने लगे हैं। हत्ता कि उनका अपना परिवार भी उनसे अपना दामन छुड़ा लिया है। वे एक तरह से महज़ मुस्लिम धर्मगुरुओं के ही शिकार नहीं हुए हैं बल्कि आम मुसलमान भी उन्हें ऩफरत और हेय दृष्टि से देखने लगा है। देश के कई धर्मगुरुओं ने तो वसीम रिज़वी को इस्लाम से ही बॉयकॉट कर दिया है। वसीम रिज़वी सलमान रुश्दी की तरह विवाद में आकर एक तरह से इस्लाम से खारिज होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ योगी की सरकार के आने के बाद उनका ज़हन मुस्लिम विरोधी हो गया है।

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वसीम रिज़वी लखनऊ के हैं। कम उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया और किसी तरह 12वीं की पढ़ाई के बाद सऊदी अरब चले गए। वहां उन्होंने होटल में काम किया। जापान और अमेरिका में नौकरी करने के बाद लखनऊ वापिस लौटे और अपना धंधा शुरू कर दिया। नगर निगम के चुनाव ने उन्हें सियासी पहचान दी। और शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के क़रीब आए और उनकी पैरवी से शिया वक़़्फ बोर्ड के मेम्बर बन गए। मुलायम सिंह की सरकार में यानी 2004 में मौलाना कल्बे जव्वाद ने वसीम रिज़वी को सीधा शिया वक़्फ़ बोर्ड का चेयरमैन बनवा दिया। वसीम रिज़वी मतलब के साथ और सरकार के साथ चलने वाले व्यक्तिव के धनी हैं। 2007 में जैसे ही मायावती की सरकार आई, वे मुलायम की ‘साइकिल’ से उतरकर ‘हाथी’ पर सवार हो गए।

मुलायम सरकार में2004 में पांच साल के लिए शिया वक़़्फ बोर्ड का चेयरमैन बनने के बाद माया सरकार तक यानी 2009 तक का अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। जब नया शिया वक़़्फ बोर्ड के गठन का मामला आया तो जमालुद्दीन अकबर चेयरमैन बनाए गए। वसीम रिज़वी भी इस वोर्ड के सदस्य चुने गए। वसीम रिज़वी और कल्बे जव्वाद के बीच जंग की यहीं से शुरूआत हुई। जमालुद्दीन अकबर पर भ्रष्टाचार का एक आरोप लगा और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 2012 में फिर मुलायम की सरकार लौटी तो वसीम रिज़वी भी सपा में लौट आए। और आज़म ़खान के रहमोकरम पर फिर से 2014 में शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन बन गए। वसीम रिज़वी बेधड़क होकर फैसले लेते रहे, नतीजतन बहुत कम समय में ही वक़्फ़ के भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो गए। कल्बे जव्वाद ने जब  समाजवादी सरकार केख़िलाफ़  हल्ला बोला तो वसीम रिज़वी केख़िलाफ़  एफआईआर दर्ज की गई। और तब मुलायम सरकार ने सीबी-सीआईडी जांच करा दी। इस तफ़्तीश में वसीम रिज़वी केख़िलाफ़  पांच ज़िलों में धांधलियां उजागर हुईं। उनके सहित 11 लोगों पर प्राथमिकी दर्ज हुई, लेकिन गिरफ्तारी नहीं।

इस जांच की ज़द सीबीआई तक पहुंची। उत्तर प्रदेश सरकार की सिफारिश पर सीबीआई ने वसीम रिज़वी के खला़फ वक़़्फ संपत्तियों के दुरुपयोग, ग़ैर- क़ानूनी तरी़के से ख़रीदने-बेचने और ट्रांसफर करने के आरोप में मामला दर्ज किया। प्रयागराज यानी इलाहाबाद में 8 अगस्त, 2016 को रिपोर्ट दर्ज की गई। दूसरी रिपोर्ट लखनऊ के हज़रतगंज थाने में 2017 में दायर की गई।

वसीम रिज़वी अपनी सियासत को धार देने के लिए और अपनी क़िस्मत  को चमकाने के लिए माहौल के ऐतबार से अपना विवादित बयान देने में माहिर माने जाते हैं। उनका एक म़कसद ख़ुद के लिए जगह बनानी है। यही वजह है कि जब सपा की सरकार रहती है तो वे मुलायम के साथ रहते हैं। बीएसपी की सरकार आती है तो मायावती के साथ हो जाते हैं। और फिर जब समाजवादी पार्टी की सरकार लौटती है तो उसी के साथ हो जाते हैं। और बीजेपी की सरकार आती है तो आदित्यनाथ योगी के साथ हो जाते हैं। ‘जो पिया मन भाए’ वैसी ही बात करते हैं।

वसीम रिज़वी ने सियासत से कमाई करने के बाद सिनेमा में भी हाथ आज़माया। 2019 में एक फिल्म के प्रोड्यूसर बने। राम की जन्मभूमि की निदेशक सनोज मिश्रा को बनाया। इस फिल्म की पटकथा, कहा जाता है कि उन्होंने ही लिखी थी। 29 मार्च,2019 को फिल्म रिलीज तो हुई लेकिन, उनके मंसूबों की तरह धड़ाम से नीचे गिर गई।