व्यक्तिगत लाभ की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना समाज व देश के लिए खतरा

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कोई भी व्यक्ति विशेष, वोटर या जनता उस पार्टी का कार्यकर्ता उसकी विचारधारा, सिद्धांत और उसकी राजनीतिक परिकल्पना को मूर्त रूप देने की कला-कौशल को ही देखकर बनता है। सिद्धांतिक तौर पर ऐसा ही देखा और सुना जाता रहा है। लेकिन दुर्भाग्यवश 2014 के बाद इस सिद्धांत को पूरा का पूरा पलटा दिया गया है। यानी अब राजनीतिक रूप से किसी भी दल का कार्यकर्ता से लेकर नेता बनने की प्रक्रिया में मोल-भाव की परिस्थिति का बहुत बड़ा हाथ हो गया है। अब लोग किसी पार्टी में इसलिए जुड़ते हैं कि इससे उनका व्यक्तिगत और पारिवारिक लाभ हो सके। इसी तरह नेता भी उस व्यक्ति विशेष को या नेता विशेष को अपने यहां इसलिए जोड़ते हैं कि उनकी पार्टी का जनाधार बढ़ सके। और दोनों की अपनी-अपनी स्वार्थ-भावना आख़िरकार समाज और देश के लिए घातक सिद्ध होता है। इसके नतीजे दुष्परिणाम बनकर समाज और देश के सामने मौजूद हैं।

आज देश और समाज के लोगों में न्याय का लोप होता जा रहा है। लोगों के मन में लालच और संकीर्णता हाबी होती जा रही है। लोगों की सोच में दीमक लग गई है। लोगों में सिर्फ और सिर्फ अपना भला सोचने की प्रवृत्ति हाबी होती जा रही है। और यही प्रवृत्ति देश और दुनिया के लिए भी घातक सिद्ध हो रही है। इस प्रवृत्ति को समय रहते दफन नहीं किया गया तो यकीन मानिए आने वाले दिनों में यह देश औऱ समाज के एक ऐसा जहरीला हथियार बन जाएगा जो किसी जैविक हथियार से भी खतरनाक साबित होगा। इसलिए समाज को बनाने और देश को दुनिया के सामने गौरव प्रदान करने के लिए ऐसी प्रवृत्ति का खात्मा जरूरी है।

ए आर आज़ाद