50 साल शासन करने की ताल ठोकने के बाद कई क़िला ध्वस्त

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आज़ाद

बड़ी ग़ज़ब स्थिति अमित शाह के दावे के बाद देखने को मिलने लगी है। देश की जनता राज्यों के मामले में क्या अमित शाह की रणनीति और सत्ता को हासिल करने की उनकी चाणक्य नीति को पसंद नहीं करती? यह एक ऐसा सवाल है जो अमित शाह के लिए भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है। जिसका जवाब अंदर ही अंदर अमित शाह भी ढ़ूंढ़ने की कोशिश कर रहे होंगे। करना तो पड़ेगा ही। क्योंकि सामने पांच राज्यों के चुनाव हैं। और बीजेपी को जिताना उनकी पहली प्राथमिकता भी है। पंचायत से लेकर संसद तक 50 साल शासन करने की ताल ठोकने के बाद अब उनके लिए करो या मरो की स्थिति विकट रूप से सामने है।

दरअसल बीजेपी ने 2018 में तीन राज्यों को खो दिया। इसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ शामिल थे। इन तीन राज्यों में से बाद में बीजेपी ने मध्य प्रदेश को अपनी कौशल-नीति और चतुराई से अपने पाले में कर लिया। लेकिन फिर भी दो राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ बीजेपी के हाथ से निकल गए।

2019 में बीजेपी के हाथ से महाराष्ट्र चला गया और झारखंड में बीजेपी को जेएमएम से लगभग आधी सीटें मिलीं और इसी के साथ बीजेपी की सत्ता से बेद़खली हो गई।

2019 अप्रैल में आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव नतीजे ने बीजेपी को सकते में डाल दिया। इसकी वजह साफ़ थी कि बीजेपी को इस बार यहां से एक सीट भी नहीं मिल सकी। जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आंध्र प्रदेश से चार सीटों पर जीत मिली थी। हां, इसी समय उड़िशा में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया। बीजेपी ने 10 से सीधे 23 सीट पर जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया। 2014 के उड़िशा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने महज़ 10 सीटों पर अपनी जीत का परचम लहराया था। ओडिशा की तरह अरुणाचल प्रदेश में भी बीजेपी ने कमाल दिखाया। अप्रैल, 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विधानसभा की 60 सीट में से 41 पर ़कब्ज़ा कर लिया। 2014 के विधानसभा चुनाव में अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के महज़ 11 विधायक ही थे। लेकिन बीजेपी ने यहां तगड़ा जंप मारा और उसने 11 से सीधे अपने 41 विधायक कर लिए यानी 30 सीटों का उसे फायदा हो गया।

बात सिक्किम की। इसी साल हुए सिक्किम विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक सीट पर भी जीत दर्ज नहीं कर सकी। लेकिन अपनी रणनीति कौशल से यहां भी वह कारगर साबित हुई और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के 10 विधायकों को रातों-रात अपने पाले में कर लिया।

2019 अक्तूबर में हरियाणा विधानसभा का चुनाव हुआ तो यहां बीजेपी गच्छा खा गई। हरियाणा विधानसभा की 90 सीटों में से बीजेपी 40 सीटों पर ही ़कब्ज़ा जमा सकी। यानी पिछले विधानसभा चुनाव के हिसाब से बीजेपी 2019 में सात सीटों से पिछड़ गई और मामला गठबंधन तक आ पहुंचा। नतीजतन जन नायक जनता पार्टी को उपमुख्यमंत्री का पद देकर अपनी सरकार और अपनी लाज बीजेपी ने बचाई। इसी तरह अक्तूबर में हुए महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों ने भी बीजेपी को हलकान किया। महाराष्ट्र में 122 सीटों वाली बीजेपी 105 पर आकर सिमट गई। यानी 50 साल शासन करने के दावों के बाद महाराष्ट्र में ही बीजेपी की हवा निकल गई और उसे 17 सीटों के नु़कसान का ़खमियाज़ा भुगतना पड़ा। उधर गठबंधन धर्म ़खतरे में पड़ा सो अलग। हाथ से गठबंधन सरकार गई अलग और कांग्रेस मुक्त देश करने के संकल्प मिशन को आघात लगा अलग। क्योंकि बीजेपी के सहयोगी शिवसेना ने कांग्रेस को सत्ता में शामिल कर बीजेपी के सीने पर सीधा तीर चला दिया।

छत्तीसगढ़ में तो बीजेपी एक दशक से सत्ता पर ़काबिज़ थी। लेकिन ताज़ा विधानसभा चुनाव में सि़र्फ 15 सीटें ही जीत सकी। जिसे साफ करने का गुमान पाले बीजेपी मचल रही थी, उसी कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ से बीजेपी को साफ कर दिया। 90 सीटों वाली विधानसभा में उसने 68 सीटें लाकर दमखम के साथ सत्ता हस्तांतरण कर लिया। बीजेपी और उसकी रणनीति धरी की धरी रह गई।

राजस्थान में भी बीजेपी का सुपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस ने बीजेपी को पटखनी दे दी। बीजेपी के रणनीतिकार को ‘पप्पू’ कहने का ज़ोर का झटका धीरे से लगा। कांग्रेस ने 99 सीटें लाकर बीजेपी को राजस्थान से खदेड़ दिया और सत्ता पर ़काबिज़ हो गई। 70 सीटों के साथ बीजेपी राजस्थान में विपक्ष की भूमिका में है।  मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान को अपने ़कब्ज़े में लेने  की कशमकश में अभी भी बीजेपी है। उसके अंदर की  छटपटाहट की गूंज कभी कभार मीडिया के ज़रिए सामने आती रहती है।

बात दिल्ली की जहां केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश दोनों है। केंद्र की सत्ता पर ़काबिज़ बीजेपी केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली पर एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने के बाद भी सत्ता सुख से पूरी तरह बंचित ही रह गई। 21 वर्षों की प्यास बूझ नहीं सकी। इस 21 वर्षों में कई सावन आए। कई मौसम बदले। लेकिन बीजेपी जस की तस प्यासी की प्यासी ही रह गई।