ए आर आज़ाद
देश के चर्चित पत्रकार विनोद दुआ को भी राजद्रोह के मामले में घसीटा गया था। उनके एक वीडियो को लेकर आपत्ति दर्ज की गई थी। और हिमाचल प्रदेश में उनके ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। हालांकि बीते दिनों जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए विनोद दुआ के ख़िलाफ़ दर्ज राजद्रोह के मामले को ख़त्म कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देश और दुनिया के तमाम बुद्धिजीवियों में एक हलचल दिखी। और एक राय से एक स्वर में मौजूदा राजद्रोह क़ानून की जमकर आलोचना की गई। अपनी प्रतिक्रिया का माध्यम ट्विटर, फेसबुक, वाट्सएप एवं सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया गया। और खुलकर अपनी राय चैनलों और अ़खबारों में भी दी। सभी लोगों ने राजद्रोह क़ानून को ख़त्म करने की आवाज़ बुलंद की। और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दिल से स्वागत किया।
विनोद दुआ के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 124 ए, सार्वजनिक उपद्रव की धारा 268, अपमान जनक प्रकाशन की धारा 501 और सार्वजनिक शरारत का इरादा रखने के आरोप की धारा 505 के तहत उन्हें आरोपी बनाते हुए उनपर राजद्रोह का मु़कदमा दर्ज किया गया। विनोद दुआ के ख़िलाफ़ हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ दिल्ली में भी राजद्रोह के मु़कदमें दर्ज हुए थे।
ग़ौरतलब है कि पत्रकार विनोद दुआ पिछले कई सालों से सरकार की नीतियों और कामकाज को लेकर सवाल उठा रहे थे। उन्होंने नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ भी यूट्यूब चैनल पर वीडियो जारी किया था। यानी सरकार की आलोचना करना सच्चे पत्रकार का जो धर्म है, उस धर्म का उन्होंने भी निर्वाह किया था। और पत्रकार के पत्रकारिता धर्म पर चलने से राजद्रोह के तहत अगर पुलिस मु़कदमा दर्ज करती है तो इसका मतलब है कि वह उस पत्रकार का उत्पीड़न करती है। और इस तरह का उत्पीड़न अपने आप में एक बहुत बड़ी सज़ा है।
राजद्रोह क़ानून को ख़त्म करने और विनोद दुआ को राजद्रोह के मु़क़दमे से सुप्रीम कोर्ट के बरी करने पर पत्रकार कवि और राजनेता प्रीतिश नंदी, वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता, टीमएसी सांसद महुआ मोइत्रा एवं देश के अन्य वरिष्ठ पत्रकारों ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया।