ए आर आज़ाद
टाटा स्टील जिसे टिस्को के नाम से भी जाना जाता है। इसका नाम भारत की प्रमुख इस्पात कंपनियों में शामिल है। यह दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी कंपनी है। टाटा स्टील के कई माइंस हैं, जिसमें नोवामुंडी माइंस सर्वाधिक चर्चित है। टाटा से नोवामुंडी त़करीबन 125 किलोमीटर दूर है। टाटा एवं नोवामुंडी के बीच चाईबासा, नोवामुंडी का एक प्रमुख प्रशासनिक केंद्र भी है। यह नोवामुंडी से 64 किलोमीटर की दूरी पर है। नोवामुंडी झारखंड में स्थित है। यह पश्चिम सिंहभूम ज़िले का एक प्रखंड भी है। नोवामुंडी को खनन शहर के रूप में जाना जाता है। इसकी सीमा उड़िशा से जुड़ी हुई है। इसके एक तरफ जगन्नाथपुर तो दूसरी तरफ खरसांवां, तीसरी तरफ जामदा एवं गुवा और किरीबुरु है।
नोवामुंडी लौह अयस्क खदान के लिए भी जाना जाता है। नोवामुंडी एक आदिवासी बहुल इला़का है। इसके चारों तरफ आदिवासी, हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ छोटे-छोटे पहाड़ इसे और सुंदर और रमणिक बना देता है। यहां ज्यादातर बोली जाने वाली भाषाओं में ‘हो’ है। यह मूल आदिवासी भाषा है। इसके बाद उड़िया, बंग्ला और हिंदी-उर्दू प्रमुख भाषाएं हैं।
नोवामुंडी खदान में लगभग 3500 मज़दूर स्थाई एवं अस्थाई कार्यरत हैं। यहां टाटा स्टील की नोवामुंडी माइंस (ओएमक्यू) के कर्मचारियों की तादाद लगभग एक हज़ार के आसपास है। और लगभग ढाई हज़ार ठेके आधारित कर्मचारी हैं।
नोवामुंडी माइंस ने अपना उत्पादन लक्ष्य निर्धारित करते हुए 2025 तक 25 मिलियन टन स्टील उत्पादन लक्ष्य तय किया है। नोवामुंडी माइंस के अंतर्गत कर्मचारियों एवं अधिकारियों के लिए आवास की बेहतरीन व्यवस्था है। जिसमें बाज़ार से सटा हुआ- संग्राम साईं कैंप है। और टॉप कैंप, बालीझरन, न्यू टॉउनशिप, जो-जो कैंप, थ्री रूम क्वार्टर और अधिकारियों के लिए ‘बंग्लो’ जगह-जगह स्थापित हैं।
नोवामुंडी माइंस अपने कर्मचारी एवं अधिकारियों के लिए एवं लोककल्याण हित के तहत कई शिक्षण एवं एनजीओ संचालित करती है जिसमें- टीएसआरडीएस, ‘सबल’, सेंट मेरिज स्कूल, टाटा डीएवी स्कूल, नोवामुंडी हॉस्पिटल एवं जगह-जगह डिस्पेंसरियां शामिल हैं। यहां नोवामुंडी कॉलेज भी है, जिसे नोवामुंडी माइंस समय-समय पर अपनी लोककल्याणकारी कर्तव्य के तहत सहायता प्रदान करती रहती है।
गौरतलब है कि नोवामंडी में मज़दूरों के हित के लिए यूनियन भी काम करती है। और इस यूनियन को सुचारू रूप से चलाने के लिए टाटा स्टील की ओर से एक यूनियन ऑफिस भी मुहैया कराया गया है।
नोवामुंडी हरियाली के लिए प्रसिद्ध है। यह सारंडा वन के केंद्र में स्थित है। सारंडा वन एशिया के सबसे बड़े और घने वनों में से एक है। आदिवासी में सारंडा का अर्थ सात सौ पहाड़ियों की भूमि होता है। नोवामुंडी में लोहे का खनन, बेल्ट के ज़रिए उत्पादन को ट्रेनों के ज़रिए टाटा तक पहुंचाया जाता है। नोवामुंडी ट्रांसपोर्ट से भी जुड़ा हुआ है। यह सड़क और रेलमार्ग दोनों से जुड़ा है। इसके रेलखंड में नोवामुंडी-राजखरसांवां-टाटानगर-हावड़ा-बड़बिल और गुआ लाइन प्रमुख हैं।
एक अनुमान के मुताबि़क हर रोज़ लगभग पांच हज़ार ट्रक यहां से लौह अयस्क की खेप लेकर आवाजाही करते हैं और अपना लाल निशान यानी लाल मिट्टी और लाल धूल-कणों को उड़ाते हुए अपने स़फर पर बढ़ते जाते हैं। टाटा स्टील नोवामुंडी में 1160.06 हेक्टेयर क्षेत्र में नोवामुंडी का माइंस पट्टा है। यहां लौह अयस्क के लिए काम किया जाता है। एक अनुमान के मुताबि़क सालाना 10.00 मिलियन टन लौह अयस्क उत्पादन यहां की क्षमता है। नोवामुंडी में खनन क्षेत्र के इतर टाऊनशिप एरिया में दर्शनीय स्थल विकसित किया गया है। सर दोराब जी टाटा के नाम से बॉटनिकल पार्क बनाया गया है। नोवामुंडी का पट्टा क्षेत्र वलमीहोर नाला से गुज़रता है। नोवामुंडी में दो बड़े प्रोसेसिंग प्लांट हैं। एक का नाम बॉटम बिन है और दूसरे का नाम एलआरपी माइंस है। नोवामुंडी के इन दोनों माइंस के लिए माइनिंग फेज नवामुंडी खदान एवं काटामाटी (उड़िशा) खदान से लौह अयस्क ब्लास्टिंग, ड्रिलिंग और माइनिंग होकर आता है। इन खदानों से आए हुए लौह अयस्क एलआरपी प्लांट में फस्र्ट प्रोसेसिंग के बाद बॉटम बिन प्लांट में सेकेंड प्रोसेसिंग के लिए जाता है। यहां यानी बॉटम बिन प्लांट में अलग-अलग तरह की क्वालिटी मैटेरियल को मिश्रण करने के बाद जमशेदपुर यानी टाटा भेजा जाता है। एलआरपी प्लांट से बॉटम बिन प्लांट तक लौह अयस्क आने का ज़रिया कंवेयर बेल्ट होता है।
नोवामुंडी में प्रशासन को संचालित करने के लिए सबसे ऊंची पहाड़ी पर जीएम ऑफिस बना हुआ है। यहां के कर्मचारियों के लिए जीएम ऑफिस से सटा एक कैंटिन भी है। उसके नीचे वर्कशॉप, कैंटिन और लास्ट में पहाड़ से उतरते हुए एक दम नीचे जाकर एक कॉलोनी है-जिसे जोजो कैंप कहा जाता है।
नोवामुंडी में कॉपरेटिव स्टोर है। खेल के बहुत बड़े मैदान हैं। गेस्ट हाउस हैं। ऑफिसर क्लब हैं। जिम केंद्र हैं। पावर हाउस हैं। जल संयंत्र हैं। झरने हैं। रेलवे स्टेशन हैं। बाज़ार हैं और ब्लॉक हैं। और कर्मचारियों के मनोरंजन के लिए जगह-जगह सिनेमा-दर्शन के लिए पर्देनुमा दीवार हैं।
नोवामुंडी लगातार विकास के पथ पर है। 2017 में लौह अयस्क खदान में तीन मेगावाट का सौर ऊर्जा प्लांट लगाया गया। उसके बाद नोवामुंडी का यह खान देश की पहली सौर ऊर्जा वाली लौह अयस्क माइंस बन गई। इतना ही नहीं माइंस में महिलाओं की बहाली वाली देश की पहली कंपनी भी बन गई। 2019 में नोवामुंडी खदान में दस महिला अधिकारियों की बहाली भी की गई थी। यानी टाटा स्टील ने नोवामुंडी आइरन माइंस में महिला इंजीनियर्स की बहाली कर सभी शिफ्टों में महिलाओं को तैनात करने वाली देश की पहली कंपनी बन गई।
नोवामुंडी की भी अपनी एक कहानी है। किंवदंती है कि इस इला़के में लौह अयस्क खोजकर्ता आए थे। उन्होंने जब स्थानीय आदिवासियों के हाथ में लोहे की कुल्हाड़ी देखी तो देखकर दंग रह गए। जब उन्होंने कौतुहलवश स्थानीय आदिवासियों से पूछा कि उन्हें यह लोहा कहां से मिला तो उन आदिवासियों ने एक पहाड़ी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वहां से मिला। और उसे नोवामुंडी कहा। यानी नोवामुंडी का शाब्दिक अर्थ पहाड़ी है।
टाटा स्टील नोवामुंडी आइरन माइंस को कई एक्सीलेंस अवार्ड भी मिल चुके हैं। इन्हें फिक्की की ओर से सेफ्टी सिस्टम्स एक्सीलेंस अवार्ड में माइनिंग सेक्टर का रजत अवार्ड भी मिल चुका है।
टाऊनशिप, नोवामुंडी का एक ़खुशनुमा हिस्सा है। इस टाऊनशिप के अंदर सबकुछ विधिवत है। सड़कें दुरुस्त। स्ट्रीट लाइट की चकाचौंध और चारों तरफ हरियाली लिए हुए ़खूबसूरत मार्ग आपको कई बार किसी हिल स्टेशन के नज़ारों के मंज़र से भी अदभुत कर देते हैं। लेकिन जब आप टाऊनशिप से बाहर निकलते हैं तो वही नोवामुंडी बदले-बदले स्वरूप में नज़र आता है। बाज़ार में दा़िखल होते ही बसों की कतार, ट्रकों की कौतुहल और छोटी-छोटी गाड़ियों के हार्न आपको दोनों नोवामुंडी में फ़़र्क महसूस करा देते हैं। नोवामुंडी बाज़ार पूरी तरह बेतरतीब अब तक है। इसके सौंदर्यीकरण पर न तो टिस्को का ध्यान गया है और न सरकार का। उनका भी नहीं ध्यान गया जो अक्सर मुख्यमंत्री बनने से पहले इस बाज़ार के विभिन्न टी स्टॉलों पर घंटों बैठकर चाय की चुस्कियां लिया करते थे। लेकिन उन्होंने भी इस नोवामुंडी बाज़ार की जमकर अनदेखी की। जी मैं बात मधुकोड़ा की कर रहा हूं।
नवामुंडी बाज़ार अब भी सौंदर्यीकरण और सुविधाओं की बाट जोहता नज़र आ रहा है। नोवामुंडी बाज़ार के आगे ट्रेन की पटरी बिछी हुई है। इधर से अक्सर मालगाड़ियां आती रहती हैं। दो बार शताब्दी ट्रेनों का आना-जाना होता है और दो बार लोकल ट्रेनें अपनी रूटीन के साथ चलती रहती हैं। लेकिन जब ट्रेनें आती हैं तो सिंग्नल पर यानी रेलवे फाटक पर जाम हो जाता है। कई मिनटों तक लोगों को सड़क पार करने के लिए इंतज़ार करना पड़ता है। अब जाकर नोवामुंडी बाज़ार में ओवर ब्रिज का काम शुरू हुआ है। आने वाले दिनों में शायद इससे राहत मिल सके। लेकिन काम की रफ्तार बताती है कि अभी साल-दो साल और इस समस्या से निजात पाने में लग सकता है।
इसलिए नोवामुंडी बाज़ार और आसपास का सौंदर्यीकरण वक़्त की ज़रूरत है। इस पर सरकार को ध्यान देने की ज़रूरत है और स्थानीय नेताओं को इसके लिए पहल करने की आवश्यकता है। ताकि नोवामुंडी माइंस एरिया देश और दुनिया के सामने सिर्फ खदान बनकर न रह जाए बल्कि इसे एक पर्यटन का भी स्थान मिल सके और इसकी जो नैसर्गिक सौंदर्यता है उसका नज़ारा देश और दुनिया के लोग भी उठा सकें।
नोवामुंडी कैंपस की ़खूबसूरत सड़कें आपको अपने मनमोहक नज़ारों से बा़ग-बा़ग कर देगी। आप यहां की टेढ़ी-मेढ़ी सड़कों और उसके चारो ओर की हरियालियों से मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। यहां की नज़ारों का दिलकश मंज़र आपकी आंखों को सकूं ही नहीं देगा बल्कि आपको उस जगह की यादों को आपके मन-मस्तिष्क में जज़्ब कर देगा।
नोवामुंडी माइंस की ओर से नोवामुंडी कैंप में वर्षा जल संरक्षण का कार्य भी किया जाता है। इसे बेहद ़खूबसूरत ढं़ग से बनाया गया है। यही वजह है कि यह लोगों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है। लोग सुबह-शाम इस जगह पर सैर करते हुए देखे जाते हैं। और इस वर्षा जल संरक्षण केंद्र का लुत्फ उठाने में भी बड़ा मज़ा स्थानीय लोग महसूस करते हैं।
यहां सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट का भी पूरा इंतज़ाम है। बाज़ाब्ता इसके केंद्र बने हुए हैं।
इसी तरह जब आप बालीझरन बाज़ार से आ रहे हों, नवामुंडी हॉस्पिटल की तरफ से आ रहे हैं या आप पावर हाउस की तरफ से आ रहे है या फिर आप हेल्थ सेंटर की तरफ से आ रहे हैं। आपको सबसे पहले कॉपरेटिव मिलेगा। उसके ठीक बाद केनरा बैंक नज़र आएगा। इन दोनों के बीचो-बीच बच्चों के खेलने का एक सुंदर स्थल दिखेगा। इसे इस तरह से विकसित किया गया है कि यह ़खूबसूरत ही नहीं बच्चों के लिए मनमोहक भी हो। यही वजह है कि यह यहां के बच्चों के एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र बन चुका है। यहां मौजूद झूले और घोड़े बच्चे के ़खास आकर्षण के केंद्र हैं। बच्चे इसपर लटटू होते हुए अक्सर देखे जा सकते हैं।
मालूम होे कि नोवामुंडी से सटे हुए कई गांव हैं। इसी कड़ी में टाटा कंपनी नोवामुंडी की माइंस की दीवार से लगभग सटा हुआ एक गांव है। इस गांव को मुंडासाईं कहते हैं। बगल में मऊदी गांव है। यहां नोवामुंडी रेलवे स्टेशन है। और यहां पर भी लौह अयस्क की साइडिंग है। पास में ही तोड़ोतोपा गांव है। इन गांवों के लोग साप्ताहिक हाटों के ज़रिए कटहल, आम, लौकी, दातून, साग-सब्ज़ी और मुर्गा बेचकर अपना गुज़ारा करते हैं। यहां की आदिवासी महिलाएं आज भी अपनी पीठ पर बच्चों को बांधकर कई किलोमीटर तक रोज़ाना सफर करती हैं। सर पर लकड़ी का बोझ लेकर एक जगह से दूसरी जगह बिक्री के लिए जद्दोजहद करती रहती हैं। नोवामुंडी विभिन्न आदिवासी गांवों के केंद्र में बसा हुआ है, जहां आज भी खपरैल के घर, पेड़ों के नीचे लोगों का जमावड़ा और हरियाली का दृश्य आसपास के इलाके़ को मनमोहक बना देता है। इसलिए जो लोग भी एक बार नोवामुंडी का सफर कर लेते हैं, उन्हें बार-बार नोवामुंडी जाने का मन करता है।
नोवामुंडी प्राकृतिक रूप से ़कुदरत का वरदान है। यहां की प्राकृतिक छटा और मनमोहक दृश्य हमें बांधे रखता है। बरसात के मौसम में इसकी हरियाली देखते ही बनती है। यहां के बॉटनिकल गार्डेन में तरह-तरह के फूल, फल, और प्राकृतिक सौंदर्य का समावेश हमें और आपको आकर्षित करने के लिए काफी है। यहां तरह-तरह की चिड़ियां रंग-बिरंगे रंगों में आपकी कौतुहलता को जीवंत कर देते हैं। यहां आपको कई तरह के जानवरों को भी नज़दीक़ से देखने का मौ़का मिलता है। तितलियों की रंगीनियां और उसके उड़ने के मनमोहक अंदाज़ बच्चों को ़खूब लुभाते हैं। यहां आपको सांप भी देखने को मिल जाएंगे, जिसे देखकर आप हैरत में पड़ जाएंगे।
नोवामुंडी को सौंदर्यता का अदभुत मंज़र मिला है। कुछ प्राकृतिक है और कुछ उसे प्राकृतिक बनाया गया है। नोवामुंडी के बीचो-बीच कैंप में सौंदर्यता-बोध कराने के लिए एक झरने को विकसित किया गया है।