प्रकृति और मानवतावादी कवि थे सुमित्रानन्दन पंतः डॉ अनिल सुलभ

पंत की प्रेरणा सबके लिए प्रेरकः ए आर आज़ाद
‘दूसरा मत’ के ग़ज़ल विशेषांक का लोकार्पण और कवि-गोष्ठी
ग़ज़ल एक ख़ूबसूरत फ़न है। बहर की पेचीदगियों को समझने के लिए यह अंक ग़ज़लगो और ग़ज़ल-प्रेमियों दोनों के लिए बेहद उपयोगी और ज़रूरी है। आज बहर और ग़ज़ल पर गुटबाज़ी हो रही है। लेकिन बहर से इतर ग़ज़ल अगर अपनी मारक क्षमता से समाज को लाभ पहुंचाने में मददगार है, तो फिर मात्रिक छंद को खारिज करने वालों को अपने गिरबां में झांकना होगा। इसलिए कि दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल को जा राहें दी, उसे खारिज करना इतना आसान भी नहीं है।
बिहार की राजधानी पटना के बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में छायावाद के प्रमुख स्तंभ सुमित्रानन्दन पंत की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर ‘दूसरा मत’ के ग़ज़ल विशेषांक का भव्य लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम के दौरान विचार गोष्ठी और कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया।
इस अवसर पर अपने संबोधन में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने कहा कि बिहार छायावाद-युग के प्रमुख स्तंभ के रूप में परिगणित महाकवि सुमित्रानन्दन पंत प्रकृति के महान चितेरे और मानवतावादी कवि थे। उन्होंने आगे कहा कि, पंत जी की रचना-प्रक्रिया को समझने के लिए, उनके जीवन के चार काल-खंडों का अलग-अलग अध्ययन करना आवश्यक है। कवि अपने यौवन में प्रेम और प्रकृति तथा उनके उदात्त सौंदर्य के चितेरे के रूप में दिखाई देते हैं। इसके पश्चात उन पर, साम्यवाद के जनक मार्क्स और प्रगतिवाद का प्रभाव दिखता है। फिर वे महात्मा-गाँधी से प्रभावित होकर सेवा और मानवता-वादी दृष्टिकोण के ध्वज-वाहक दिखते हैं। और, जीवन के चौथेपन में उन पर महर्षि अरविन्दो का प्रभाव पड़ता है, जिसमें उनकी आध्यात्मिक-चेतना उर्द्धगामी होती दिखाई देती है।
इस अवसर पर दिल्ली से प्रकाशित राष्ट्रीय पाक्षिक पत्रिका ‘दूसरा मत’ के विशेष ग़ज़ल-अंक का लोकार्पण किया गया। ‘दूसरा मत’ के इस अंक में अनेक शायरों की ग़ज़लें भी प्रकाशित हुई हैं। और शायरी की इस खूबसूरत विधा पर अनेक विद्वानों के आलेख भी हैं।
दूसरा मत पत्रिका के संपादक और शायर ए आर आज़ाद ने ग़ज़ल विशेषांक के साहित्यिक अवदानों पर चर्चा करते हुए कहा कि ग़ज़ल एक ख़ूबसूरत फ़न है। बहर की पेचीदगियों को समझने के लिए यह अंक ग़ज़लगो और ग़ज़ल-प्रेमियों दोनों के लिए बेहद उपयोगी और ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि आज बहर और ग़ज़ल पर गुटबाज़ी हो रही है। लेकिन बहर से इतर ग़ज़ल अगर अपनी मारक क्षमता से समाज को लाभ पहुंचाने में मददगार है, तो फिर मात्रिक छंद को खारिज करने वालों को अपने गिरबां में झांकना होगा। इसलिए कि दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल को जा राहें दी, उसे खारिज करना इतना आसान भी नहीं है। बहर की ग़ज़लें अगर गुनगुनाने तक ही रह जाए, तो फिर इससे समाज का क्या भला होना है! समाज को संवारने में साहित्य का हर युग में योगदान रहा है। और साहित्य को गौरव स्थान दिलाने में ग़ज़ल का युग-युगांतर तक योगदान रहेगा।
ग़ज़ल विशेषांक पर चर्चा से पूर्व अतिथियों का अभिनन्दन करते हुए सम्मेलन के साहित्यमंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा छायावाद को हिन्दी काव्य का स्वर्ण युग कहा जाता है। पंत जी इस युग के गौरव स्तम्भ हैं। ग़ज़ल विशेषांक के विमोचन के दौरान सुमित्रानंद पंत को याद करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, प्रो रत्नेश्वर सिंह, बच्चा ठाकुर तथा विभा रानी श्रीवास्तव ने भी अपने-अपने विचार रखे।
कवि-सम्मेलन सह मुशायरे की शुरूआत चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना हुई। वरिष्ठ शायर आरपी घायल, गीतिधारा के चर्चित कवि आचार्य विजय गुंजन, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, चंद्रिका ठाकुर ‘देशदीप’, राजेश दूबे, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, कुमार अनुपम, शायरा शमा कौसर ‘शमा’, डा वीणा, डा प्रतिभा रानी, सुधा पाण्डेय, उत्तरा सिंह, सदानन्द प्रसाद, ईं अशोक कुमार, रौली कुमारी, सुनीता रंजन, शंकर शरण आर्य, प्रेम प्रकाश, श्रुत कीर्ति अग्रवाल, बिन्देश्वर प्रसाद गुप्त, भास्कर त्रिपाठी आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी काव्य-पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर, वरिष्ठ और पटना के चर्चित पत्रकार वीरेंद्र कुमार यादव, वरिष्ठ व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, प्रवीर कुमार पंकज, इंदु भूषण सहाय, डा चन्द्रशेखर आज़ाद, वीरेन्द्र यादव, दुःख दमन सिंह, नन्दन कुमार मीत तथा सुमन कुमार समेत बड़ी संख्या में कविगण और सुधी श्रोता मौजूद थे।
ब्यूरो रिपोर्ट दूसरा मत