मुस्लिम तुष्टिकरण पर देश के खजाने से छह सौ चालीस करोड़ की लूट !

मुस्लिम, सीख और इसाई को सौग़ात ए मोदी किट
बीजेपी देख रही है मुंगेरी लाल के हसीन सपने !
इंट्रो- देश के खजाने से तक़रीबन छह सौ चालीस करोड़ ख़र्च करके ईद पर मुसलमानों को तोहफ़ा देने की एक परंपरा शुरू हुई है। यह किसी और ने नहीं उन्होंने की है, जिन्होंने कभी दावा किया था कि उन्हें मुस्लिम वोट की ज़रूरत ही नहीं है। यानी बीजेपी की नज़र बिहार के मुस्लिम मतदाताओं पर है। फिर बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुदुचेरी पर। बेजपी ने ईद में तोहफ़ा देकर बदले में वोट का ज़क़ात लेने का उन्होंने एक नया सपना देखा है। इसी सपने को इतिहास ने मुंगेरी लाल के हसीन सपने क़रार दिया है। पढिए ए आर आज़ाद की बेबाक तौर पर की गई प्रधानंत्री मोदी के मुस्लिम तुष्टिकरण की पड़ताल। और बीजेपी की मुस्लिम तुष्टिकरण पर खुला प्रहार।
ए आर आज़ाद
शिद्दत की गरमी में नदी किनारे बैठकर मछली मारने वाले लंबे वक़्त से किसी मछली के फंसने की बाट जोह रहे हों और फिर भी एक मछली न फंस पाए, तो ज़ाहिर है उसके अंदर बेचैनी तो होगी ही। और इसी बेचैनी को भांपकर कोई मगरमच्छ उससे कह दे कि आओ मेरी पीठ पर चढ़ जाओ, मैं तुम्हें बड़ी-बड़ी मछलियां पकड़वा दूंगा। तो ज़ाहिर सी बात है कि मछली मारने वाले की बंसी में मछली फंसे या न फंसे लेकिन मगरमच्छ की जाल में वह मछली मारने वाला ज़रूर फंस जाएगा।
यही कहानी कुछ घूमाफिराकर सौग़ात ए मोदी की है। मोदी को देश का ज़्यादातर मुसलमान ‘मगरमच्छ’ ही समझता है। इसलिए वह डरा सहमा रहता है। उसे मालूम है कि नदी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता है। अब सवाल उठता है कि सरकारी खज़ाने को मुसलमानों पर ख़र्च करने की योजना मोदी ने क्यों बनाई? यह सवाल इसलिए उठता है कि मोदी की ही तरह प्रधानमंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह ने जब कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है, तो तब के पीएम उम्मीदवार मोदी बिफर उठे थे। पूरे समाज में विरोध की लहर दौड़ा दी थी। इस ख़बर को आग की तरह फैला दी थी। एक आंधी ला दी थी। एक भूचाल ला दिया था। जबकि तत्कालनी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के उस कथन से समाज के किसी हिस्से का कोई नुक़सान नहीं हुआ था। देश के खजाने से कुछ नहीं निकला था। देश पर कोई बोझ नहीं बढ़ा था। जीडीपी के मामले में भी आर्थिक नुक़सान का भी कोई अंदेशा भी नहीं था। किसी नुक़सान का दूर-दूर तक कोई गुमान भी नहीं था। लेकिन मौजूदा देश के कट्टर और एक धर्मविशेष के प्रधानमंत्री के तौर पर ख़ुद को स्थापित करने वाले और बीजेपी के स्वयंभू प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो अपने नाम पर सौग़ात ए मोदी योजना को लागू कर देश को की संपत्ति को दोनों हाथों से लुटा दिया है। उन्होंने देश के खजाने से अनुमानित छह सौ चालीस करोड़ रूपए का चूना लगाया है। इसे दूरदृष्टि नहीं, ख़ुदगर्ज़ी समझा जाए। इसे सौदा समझा जाए। और इसे महज़ एक सौदागर का सौदा समझा जाए।
अगर ऐसा नहीं है तो प्रधानमंत्री मोदी मुस्लिम तुष्टिकरण करना छोड़ दें। मुस्लिम तुष्टिकरण पर उनका कोई अधिकार नहीं है। बीजेपी ने मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर एक षडयंत्र के तहत मुसलमानों को मिलने वाली योजनाओं से लगातार वंचित किया है। आज के प्रधानमंत्री और कल के गुजरात के मुख्यमंत्री और उससे पहले आरएसएस के जांबाज़ सिपाही नरेन्द्र मोदी ने सेक्युलर सरकारों को मुस्लिम तुष्ठिकरण के नाम पर नाक में इतना दम कर दिया कि तथाकथित धर्म निरपेक्ष सरकारें डर से मुसलमानों के लिए योजना बनानी ही बंद कर दी। योजना बनाई, तो उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ काग़ज़ों तक ही सीमित कर दिया। उस योजना को क्रियान्वित ही नहीं होने दिया। और अल्पसंख्यक मामलों में बांटी गई राशि ख़र्च तक नहीं हो सकी। साल दर साल यानी वर्षों-वर्ष वे पैसे यूं के ही यूं पड़े रहे।
यह समझना होगा कि जो बीजेपी कहती रही, जो देश के 56 इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री कहते रहे कि मुझे मुस्लिम वोटों की ज़रूरत नहीं है। आज उन्हें मुसलमानों की याद कैसे आ गई? कैसे उन्हें पता चला कि मुसलमान ईद भी मनाते हैं। इसी प्रधानमंत्री की पुलिस ने रोड पर नमाज़ पढ़ने वाले मुसलमानों को नमाज़ पढ़ते हुए लाठी और डंडों से बेहतहाशा पीटा था। अधमरा करके छोड़ा था। जिस प्रधानमंत्री मोदी के राज में देश के मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक हो गए हैं, जिन्हें किसी न किसी नाम पर, कभी भी, किसी भी समय तंग किया जा सकता है। याद कीजिए गाय के नाम पर कितने मुसलमानों के साथ दरिंदगी की गई? कितने मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया? और देश के दूसरे मौनी बाबा यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुप। एकदम चुप। सन्नाटा भरा चुप।
अब सवाल उठता है कि क्या सही मायने में देश के अन्य धर्मावलंबी इस नफ़रत की खेती से बीजेपी और संघ से नाराज़ होते जा रहे हैं। उन्हें किसी विकल्प की तलाश है। और संघ ने देश के इन हिन्दुओं की मानसिकता को पढ़ लिया है। और अब संघ को लगता है कि बीजेपी मुसलमानों के मामले में अंतिम चोटी तक पहुंच चुकी है। इसलिए बीजेपी को फिर से कुछ क़दम पीछे हटना चाहिए। दरअसल एक कहावत है कि जिसे लंबी छलांग लगानी हो, वो कुछ क़दम पीछे हटकर छलांग लगाएं। संघ इसी सोच की हिमायती है। और इसी के नतीजे में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले कुछ महीनों से मुसलमानों को लेकर अपने बयानों को लचीला बना लिया है। दरअसल संघ बीजेपी के लिए पटरी तैयार करती है। फिर बीजेपी उस पटरी पर बॉगी और इंजन की तरह दौड़ लगाती है। संघ की यह पटरी बीजेपी के लिए मुफ़ीद होगी कि नहीं, यह कहना मुश्किल है क्योंकि संघ और बीजेपी ख़ुद दोनों एक पटरी पर नहीं है। संघ कुछ चाहती है, बीजेपी कुछ। दोनों के अंतर का फासला अब तो खाई में तब्दील होता चला जा रहा है। संघ के अंदर से आदर्शवाद और इंसाफ़ दोनों चला गया। संघ से संस्कार की उम्मीद रखना तो अब बेमानी होगी। देश के प्रमुख संघियों में से एक नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही संघ को भी अपने ही रंग में रंग दिया। बीजेपी का ऑफिस अगर पंच सितारा का बाप बना तो संघ का ऑफिस भी किसी पांच सितारे से कम नहीं रहा। सुविधाओं के जाल में संघ को मोदी ने ऐसा जकड़ दिया कि अब संघ को मौज की आदत लग गई है। और यही आदत बीजेपी के लिए वरदान साबित हुई। और संघ के लिए जी का जंजाल।
बहरहाल संघ ने बीजेपी को मुसलमानों के क़रीब होने का एक मंत्र दिया है। बीजेपी की भावना संघ के प्रति तो अब भी कुछ न कुछ है। लेकिन मुसलमानों के प्रति एकदम नहीं है। बीजेपी ने 2014 से मुसलमानों को गद्दार समझना शुरू किया है। अब इस समझ को जाने में थोड़ा समय तो लगेगा। बीजेपी तो चाहती है कि देश से मुसलमान ही चला जाए। सीएए, एनआरसी और शाहीन बाग़ जैसे मुद्दों से भी वह मुसलमानों का कुछ बिगाड़ न सकी, तो यूपी के सहारे बुलडोज़र का खेल खेला। चुन-चुन कर मुस्लिम घरों को ज़मींदोज़ किया गया। अदालतें चुप्पी साधे रहीं। सुप्रीम कोर्ट अपने कोर्ट में ही घुसी रही। बाबा का बुलडोजर शान से चलता रहा। अब जब सारे निशाने पर रहे मुसलमानों के घर बुलडोजर से तबाह हो गएं, तो अदालतें नींद से जागीं। और कहने लगी कि ये सही नहीं है।
ये भी सच है कि बीजेपी का अल्पसंख्यक विभाग मरा हुआ था। इनके पदाधिकारियों के पैर में शर्म की ज़ंग लग गई थी। वे अपना मुंह मुसलमानों के सामने कैसे ले जाते? यानी उन्हें मुसलमानों के सामने कुछ बोलने का मुंह ही नहीं था। अब वे इस मुहिम से मुसलमानों के सामने जाएंगे। कहेंगे कि देखिए प्रधानमंत्री का हृदय परिवर्तन हुआ है। अब बिहार में बीजेपी की सरकार आएगी, तो इसी तरह मुसलमानों पर तोहफ़े की बारिश होगी। अब तो प्रधानमंत्री का मन कर रहा है कि देश के मुसलमानों की आर्थिक हालत ठीक हो जाए। और इसकी शुरूआत बिहार में बीजेपी सरकार के आने के साथ ही हो। इसलिए आप लोग सबकुछ भूलकर बीजेपी को वोट दीजिए। और यह किट लीजिए। और संवेदनाओं में बहने वाला मुसलमान भी यह सौग़ात किट लेकर बीजेपी को वोट दे देगा। और बीजेपी 2025 में बिहार में अपने दम पर पूर्ण सरकार गठित कर लेगी। जैसे दिल्ली में अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार गठित कर ली है। यह बीजेपी का मंसूबा है। इसे आप इस तरह समझ सकते हैं। बिहार में एक जगह है। वह जगह मीर क़ासिम के नाम से इतिहास में जानी जाती है। और वर्तमान में उसे लोग मुंगेर के नाम से जानते हैं। और वहां के बारे में एक कहावत बहुत प्रचलित है- मुंगेरी लाल के हसीन सपने। बिहार को लेकर बीजेपी मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रही है। ख़बरदार ! टोकिएगा नहीं। कुछ बोलिएगा नहीं। बीजेपी अभी नींद में है। संघ ने उसे सौग़ातनुमा नींद की गोली दी है। और उस गोली को खाकर बीजेपी सपने देख रही है। वह दिवास्वप्न काफ़ूर न हो। तबतक बीजेपी के खेल को समझिए। उसका तमाशा देखिए।
(लेखक प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार हैं)