हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रिय शिष्य डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी को आचार्य हाशमी स्मृति पुरस्कार-2025

व्यक्तिगत लालसा के प्रश्न के जवाब में कहा कि मैं मरना नहीं चाहता हूं। मैं और लिखना-पढ़ना चाहता हूं। मैं सौ साल तक जीना चाहता हूं। लोगबाग कहते हैं कि आप अभी बहुत ठीक है। लेकिन ज़िंदा हूं तो याद भी है। याद भी बहुत ताक़त देती है। इस बीच बातों-बातों में पत्नी की स्मृति में गले रौंध जाते हैं। और आंखों से अनायास आंसू टपक पड़ते हैं। कुछ देर तक शब्ध धुंधले पड़ जाते हैं। और ज़ुबां बेबस हो जाती है। फिर ख़ुद को संभालते हुए कहते हैं कि मैं जब मरने लगूं तो मेरे बच्चे सीमा, रेखा और जो हैं सब रहे हीं। जिदगी की जो ख़ूबसूरती है, वो भी मेरे सामने रहे। और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और मेरी पत्नी ये दो मुझे मरते समय याद आएं।
31 मई की संध्या डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी को उनके आवास पर आचार्य हाशमी स्मृति पुरस्कार- 2025 प्रदान किया गया। यह पुरस्कार देश की गंगा जमुनी तहज़ीब को समर्पित संस्था आचार्य हाशमी सौहार्द मंच के तत्वाधान में प्रदान किया गया। डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी देश के चर्चित और नामवर साहित्यकार के साथ-साथ बेहतरीन आलोचक और बेहतरीन मिलनसार इंसान के तौर पर जाने जाते हैं।
डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी को आचार्य हाशमी स्मृति पुरस्कार- 2025 के तहत शॉल, शील्ड, प्रशस्ति-पत्र एवं 2100 रुपए की नगद राशि प्रदान की गई। यह पुरस्कार आचार्य हाशमी सौहार्द मंच के अध्यक्ष एवं दूसरा मत के संपादक ए आर आज़ाद ने प्रदान किया। इस अवसर पर जामिया मिलिया इस्लामिया के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नीरज, दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर अनिल राय, मेघ देवता के लेखक सैयद असद आज़ाद एवं किरोड़ी मल कॉलेज के ओम ऐतिहासिक क्षण के साक्षी रहे।
पुरस्कार का यह क्षण यादगार समारोह बन कर रह गया। डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने पुरस्कार के बाद दिल खोलकर कई विषयों पर चर्चा की। और मौजूद लोगों का मन मोह लिया। उन्होंने कई दुलर्भ वाक़या सुनाया। उन्होंने पुरस्कार के बाद अपने संबोधन में कहा कि आचार्य हाशमी स्मृति पुरस्कार पाकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। हमें बेहद ख़ुशी हुई है। यह हमारे लिए गौरव की बात है। और ख़ासकर यह पुरस्कार सांप्रदायिक सौहार्द को समर्पित है, इसलिए यह और भी गौरव की बात है।
मालूम हो कि आचार्य हाशमी स्मृति पुरस्कार-2025 से पहले डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी को कई अहम पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। इन्हें अब तक साहित्य अकादेमी का भाषा सम्मान और हिन्दी अकादमी का साहित्य सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा व्यास सम्मान, मूर्तिदेवी पुरस्कार, भारत भारती पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, डॉ. रामविलास शर्मा सम्मान, शमशेर सम्मान, शान्तिकुमारी वाजपेयी सम्मान, गोकुलचंद्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार एवं सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। इन्होंने अबतक विभिन्न महत्वपूर्ण विधाओं पर लगभग दो दर्जन किताबें लिखी हैं। इन पर कई विद्यार्थियों ने शोध किए हैं। और इनकी पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों में शामिल हैं।
पुरस्कार के बाद दूसरा मत के संपादक को दिए गए साक्षात्कार में कई महत्वपूर्ण सवालों का जवाब दिया। और कहा कि मनुष्य को कभी शिकायत नहीं करनी चाहिए। आदमी को नाशुक्रा नहीं होना चाहिए। आदमी को कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे कभी शर्मिंदा होना पड़े। लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां कभी-कभार आदमी को शर्मिंदा भी होना पड़ता है। लेकिन इससे बचना चाहिए।
उन्होंने अपनी व्यक्तिगत लालसा के प्रश्न के जवाब में कहा कि मैं मरना नहीं चाहता हूं। मैं और लिखना-पढ़ना चाहता हूं। मैं सौ साल तक जीना चाहता हूं। लोगबाग कहते हैं कि आप अभी बहुत ठीक है। लेकिन ज़िंदा हूं तो याद भी है। याद भी बहुत ताक़त देती है। इस बीच बातों-बातों में पत्नी की स्मृति में गले रौंध जाते हैं। और आंखों से अनायास आंसू टपक पड़ते हैं। कुछ देर तक शब्ध धुंधले पड़ जाते हैं। और ज़ुबां बेबस हो जाती है। फिर ख़ुद को संभालते हुए कहते हैं कि मैं जब मरने लगूं तो मेरे बच्चे सीमा, रेखा और जो हैं सब रहे हीं। जिदगी की जो ख़ूबसूरती है, वो भी मेरे सामने रहे। और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और मेरी पत्नी ये दो मुझे मरते समय याद आएं।