पद्मश्री डॉ. रामदरश मिश्र : शताब्दी यात्रा परिपूर्ण
संपादकीय
ए आर आज़ाद
देश के जानेमाने साहित्यकार पद्मश्री डॉ. रामदरश मिश्र नहीं रहे। सुखद बात ये रही कि अंतिम समय तक उन्होंने साहित्यकारों से अपना जुड़ाव रखा। अपने शुभचिंतकों की शतायु की कामना को परिपूर्ण करते हुए उन्होंने दीर्घायु जीवन को सहज स्वीकार किया। और 101 वर्षों की जीवन-यात्रा को सुखमय और गरिमामयी बनाया। उन्होंने 31 अक्तूबर, 2025 को दुनिया से रूख़सत होते हुए हम सबको अलविदा कह दिया।

उनकी ज़िंदगी का सफ़र हमारे लिए प्रेरणादायक रहा। 1996 से टेलीफोनिक जुड़ाव, 2006 के बाद प्रगाढ़ता में बदलता चला गया। दिल्ली शहर के एक ही इलाक़े के शहरी और साहित्यकार होने के नाते एक दूसरे से क़रीबी तौर पर जुड़ गए थे। वे पहले से उत्तम नगर में रहते थे। और 2006 में मैं भी जब इसी इलाक़े में रहने लगा, तो फिर आने-जाने का सिलसिला निरंतर रहा।
मिश्र जी का परिवार अपना सा लगने लगा। उनकी धर्मपत्नी ने तो हमेशा बेटा कहकर बुलाया। वे भी अब नहीं रहीं। उन्होंने इनसे पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन वे जब तक ज़िंदा रहीं मुझे मां का एहसास कराती रहीं। वे अपने हाथों से मेरे लिए चाय लातीं, बैठकर गपशप करतीं। और बड़े स्नेह के साथ हाल चाल पूछतीं। सम्माननीय रामदरश मिश्र जी ने भी उसी स्नेह और अपनेपन के साथ सदा सम्मान दिया। और हमारी रचनाओं में स्तरीयता का भाव जगाया। उन्होंने हमारी कविताओं पर ख़ुशी का इज़हार किया। उन्होंने हमारी कविताओं को हमेशा गहराई से पढ़ा। और जहां जो भी चीज़ें अच्छी लगी, अगली मुलाक़ात में उसे बताकर सदा हमारी हौसला अफ़ज़ाई की।

रामदरश मिश्र साहित्यकारों को देश की पूंजी मानते थे। इसलिए अपने घर में आने वाले साहित्यकारों के साथ बड़ी ही सहजता का भाव रखते थे। हमारी उनसे आख़िरी मुलाक़ात उन्हें आचार्य फ़ज़लुर रहमान ‘हाशमी’ स्मृति पुरस्कार- 2025 देते वक़्त तक की रह गई। कई बार चाहकर भी उनसे मुलाक़ात नहीं हो सकी। जबकि पुरस्कार देते वक़्त उनसे वादा किया था कि मैं उनसे फिर मिलने आऊंगा, और इंटरव्यू लूंगा। लेकिन वह वादा उनके स्वास्थ्य कारणों और मेरी व्यवस्ता के कारण अधूरा रह गया। इसका मुझे बेहद अफ़सोस है।
देश के अप्रियतम नक्षत और राष्ट्र के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र के लिए आचार्य ‘हाशमी’ स्मृति पुरस्कार- 2025 आख़िरी पुरस्कार रहा। यह पुरस्कार उन्हें 30 मई, 2025 (शुक्रवार) की संध्या, द्वारका स्थित उनके आवास पर मैंने एवं बाल कहानीकार व ‘मेघ देवता’ के लेखक सैयद असद आज़ाद ने सम्मानपूर्वक और गौरवमयी अंदाज़ में अपने हाथों से प्रदान किया। इस सुहावने अवसर पर उनके चेहरे की रौनक़ ने हमें उत्साहित भी किया और गौरवान्वित भी।

जब उन्हें ‘दूसरा मत’ ग़ज़ल-विशेषांक भेंट की गई, तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। इस विशेषांक में उनकी भी कई ग़ज़लें शामिल थीं। ग़ज़ल-विशेषांक पर अपनी बेबाक राय रखते हुए पद्मश्री डॉ. रामदरश मिश्र ने कहा कि यह अंक पहली ही नज़र में लोगों को अपनी ओर खींच लेता है। उन्होंने अंदर के पृष्ठों को पलटने के बाद अपनी दूसरी प्रतिक्रिया में कहा कि यह शानदार अंक है। और आपने बड़े ही श्रम से इसे जानदार बना दिया है। उन्होंने अपने आशीर्वचन में कहा कि आपको इसके लिए बहुत-बहुत बधाई।
पुरस्कार वितरण के दौरान हुई आधे घंटे की गपशप में उन्होंने कई साहित्यिक प्रकरण पर चर्चा की। और अपने सुखद जीवन के संदर्भ पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि उम्र के इस पड़ाव पर भी लोगों का विशेषकर साहित्यकारों और पत्रकारों का प्यार मिल रहा है। आए दिन लोगबाग मिलने आते हैं। और टेलीफोन से हालचाल लेते रहते हैं। उन्होंने अपने परिवार के प्रति आभार व्यक्त किया। और कहा कि पूरे परिवार का प्रेम और सानिध्य हमें मिल रहा है। यह हमारे लिए सुखद और मन को गौरवान्वित करने वाला है।

उन्होंने आज की ग़ज़ल पर भी चर्चा की। और कहा कि ग़ज़ल में उर्दू के अल्फ़ाज़ों के मिश्रण से ग़ज़ल बेहतरीन बन जाती है। उर्दू और हिन्दी तो दोनों बहन की तरह हैं। दोनों मिलकर ग़ज़ल को बेहतरीन बना देती हैं।
अंतिम समयमें भी पद्मश्री डॉ. रामदरश मिश्र का चेहरा बुलंदी की दास्तान कहता हुआ नज़र आ रहा था। वे जीवन से ख़ुश थे। परिवार का आनंद ले रहे थे। उन्हें इस जीवन से कोई शिकायत नहीं थी।
ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि साहित्य में उनका क़द आसमान को छूता है। ऐसे ही महापुरुष देश की थाती होते हैं। पद्मश्री डॉ. रामदरश मिश्र देश और समाज की थाती हैं। ‘दूसरा मत’ परिवार उन्हें इन्हीं अल्फ़ाज़ों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
प्रमुख पुरस्कार
आचार्य फ़ज़लुर रहमान हाशमी स्मृति पुरस्कार (2025)
पद्मश्री अवार्ड (2025)
सरस्वती सम्मान (2021) -के. के. बिरला फाउंडेशन
प्रभात शास्त्री सम्मान (2018) – हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग
शान ए हिंदी खिताब (2017) – साहित्योत्सव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र
साहित्य शिरोमणि सम्मान (2018) – अखिल भारतीय स्वतंत्र लेखक मंच
साहित्य अकादमी (2015)
विश्व हिंदी सम्मान (2015) –विश्व हिंदी सम्मलेन
राष्ट्रीय साहित्यिक पुरस्कार (2012) – श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर
व्यास सम्मान (2011) – के. के. बिरला फाउंडेशन
अक्षरम शिखर सम्मान (2008) – दिल्ली
साहित्य वाचस्पति (2008) – हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग
उदयराज सिंह स्मृति सम्मान (2007) – नई धारा, पटना
सारस्वत सम्मान (2006) – समन्वय, सहारनपुर
भारत भारती सम्मान (2005) – उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान,
पूर्वांचल साहित्य सम्मान (2005) दिल्ली
महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान (2004) – केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
.डॉ. रामविलास शर्मा सम्मान (2003) – आल इंडिया कान्फ्रेन्स ऑफ़ इंटलेक्चुएल्स, आगरा चैप्टर
शलाका सम्मान (2001) – हिंदी अकादमी, दिल्ली
दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (1998)
साहित्य भूषण सम्मान (1996) – उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ
नागरी प्रचारिणी सभा सम्मान, आगरा (1996)
